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राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा (23 फरबरी 1876 – 20 दिसबर 1956 )

Homepage News राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा (23 फरबरी 1876 - 20 दिसबर 1956 )

राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा (23 फरबरी 1876 – 20 दिसबर 1956 )

mission jai bheem
December 26, 2022
News

राष्ट्रीय संत बाबा गाडगे जिन्होंने जगह जगह घूमर स्वछता और शिक्षा का पाठ पढ़ाया, बाबा साहब के समकालीन गाडगे बाबा जिन्हे महराष्ट्र में कई नमो से जाना जाता है। कही उन्हें मिट्टी के बर्तन वाले गाडगे बाबा व कहीं चीथड़े-गोदड़े वाले बाबा के नाम से पुकारा जाता था। बाबा का असली नाम कोई नहीं जनता। गाडगे बाबा के बचपन का नाम डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था, उनका जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगांव अंजनगांव में हुआ था। और बाबा का परिनिर्वाण 20 दिसंबर 1956 में हुआ।

Gadge Baa, Baba Sahab and Savitri Ambedkar

बाबा ने धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी। अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक झोपडी तक नहीं बनवाई। जबकि उन्होंने महाराष्ट्र के हर कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख मांग-मांगकर बनावाया। बाबा के परिनिर्वाण पर उनकी संपत्ति थी, मिट्टी का एक बर्तन जो खाने-पीने और कीर्तन के समय ढपली का काम करता था और एक लकड़ी, फटी-पुरानी चादर ।

Gadge Dharm Shala

अंधविश्वासों, बाह्य आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभांति अनुभव हुआ। इसी कारण इनका उन्होंने घोर विरोध किया। हलाकि बाबा अनपढ़ थे, किंतु बड़े बुद्धिवादी थे। पिता की मौत हो जाने से उन्हें बचपन से अपने नाना के यहां रहना पड़ा था। वहां उन्हें गायें चराने और खेती का काम करना पड़ा था। सन्‌ 1905 से 1917 तक वे अज्ञातवास पर रहे। इसी बीच उन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा।

बाबा गाडगे ने समाज की हर कुरीतियों को मिटने के लिए काम किया। संत गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय था- लोक सेवा। दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने प्रखर विरोध किया। उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थस्थानों में है और न मंदिरों में व न मूर्तियों में। दरिद्र व्यक्तियों के रूप में ईश्वर मानव समाज में विद्यमान है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस भगवान को पहचाने और उसकी तन-मन-धन से सेवा करें। भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, नंगे को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को हौसला और मूक जीवों को निर्भीकता प्रदान करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।

बाबा कहा करते थे, कि तीर्थों में पंडे, पुजारी सब भ्रष्टाचारी रहते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली पशुबलि के भी वे घोर विरोधी थे। यही नहीं छुआछूत, नशाखोरी, जैसी सामाजिक बुराइयों के साथ मजदूरों व किसानों के शोषण के भी वे प्रबल विरोधी थे। संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी प्रचलित है, पर संत गाडगे इसके प्रबल विरोधी थे। बाबा समानता में विश्वास रखते थे, ना कोई किसी से बड़ा है ना कोई किसी से छोटा।

बाबा कहते थे, एक रोटी खाओ पर अपने बच्चो को जरूर पढ़ाओ ।

कर्मयोगी राष्ट्रसंत गाडगे बाबा एक सच्चे निष्काम कर्मयोगी, विचारक और समाज सुधारक थे। ऐसे महान संत को उनके परिनिर्वाण दिवस पर कोटि-कोटि नमन।

Tags: sant gadge
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6 दिसंबर 1956 बाबा साहब का परिनिर्वाण।
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प्रथम शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले

1 reply added

  1. Aashish Ambedkar January 2, 2023

    Jai Bhim Jai bharat

Comments are closed.

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