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प्रथम शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले

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प्रथम शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले

mission jai bheem
January 4, 2023
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प्रथम शिक्षिका, समाज सेविका, कवि और वंचितों की आवाज उठाने वाली सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले। जिनके जीवन और कामो के बारे में अभी भी देश के बहुत सारे लोग नहीं जानते। यहां तक की बहुत सारी महिलाएं भी इस बात से अनजान है कि, अगर वह शिक्षित है, रोजगार के योग्य है। तो वह आखिर किस के प्रयासों के चलते हैं। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को पुणे से 50 किलोमीटर दूर पुणे के नए गांव में हुआ था। 1840 में 10 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ज्योतिराव के साथ हुआ था। जो कि उस समय 13 वर्ष के थे उन्होंने एक बालक को गोद लिया था। जिसका नाम उन्होंने यशवंत रखा।

 

महात्मा ज्योतिराव ने अपनी पत्नी को घर पर ही पढ़ाया। और उन्हें शिक्षिका के तौर पर प्रशिक्षित किया। मुंबई गार्जियन के 22 नवंबर 1891 में प्रकाशित एक खबर के अनुसार। उनकी आगे की शिक्षा की जिम्मेदारी, ज्योतिराव के मित्र सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भवन ने संभाली। सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला अध्यापिका थी। घर की देहरी लाकर बाहर पढ़ाने जाने के इस कदम से आधुनिक भारतीय महिला के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत होती है। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर महिलाओं की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण काम किया।

1848 में उन्होंने देश में पहली महिला स्कूल की स्थापना की। जिसके बाद वह 5 विद्यालय खोलने में सफल हुए। 5 फरवरी के एक आवेदन पत्र के अनुसार लड़कियों के लिए 3 जुलाई 1851, 17 नवम्बर 1851, 15 मार्च 1852 चिपलू नकार वादा, रास्ता पेट और वेंडल पेट विद्यालय शुरू किए गए। सावित्रीबाई फुले इन में से सबसे पहले स्थापित स्कूल की प्रधानाध्यापिका थी। एक ऐसी महिला जिन्होंने 19वीं सदी में छुआछूत, बाल विवाह तथा विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के लिए काम किया।

 

उन्हें भारत ने भुला दिया। क्योंकि उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने भारत में नारी शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में सावित्रीबाई उनके पति दोनों ने मिलकर शूद्र एवं स्त्री शिक्षा आरंभ करके, युग की नींव रखी। सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितंबर 1872 को हुई। और सावित्रीबाई फुले संस्था की एक अत्यधिक समर्पित कार्यकर्ता थी। यह संस्था कम से कम खर्चे पर दहेज मुक्त और बिना पंडित पुजारियों के विवाह का आयोजन कराती थी। इस तरह का पहला विवाह 25 दिसंबर को संपन्न हुआ।

सावित्री बाई की मित्र बाजूबाई निम्बकर की पुत्री राधा और सीताराम जबाजी अल्हाट की शादी पहली सत्यशोधक शादी थी। इस ऐतिहासिक अवसर पर सावित्रीबाई ने स्वयं सभी खर्च वहन किये। इस प्रकार के विवाहों की पंजीकृत विवाह पद्धति से मिलती जुलती होती थी। जो आज भी भारत के कई भागों में पाई जाती है।पूरे देश के पुजारियों ने इन विवाहों का पुरजोर विरोध किया। और वे इस मुद्दे को लेकर कोर्ट में भी गए। फुले दंपत्ति को कठोर परेशानियों का सामना करना पड़ा। किंतु अपने पथ से विचलित नहीं हुए।

 

4 फरवरी 1889 को उन्होंने अपने दत्तक पुत्र की शादी इसी पद्धति से की। यह विवाह आधुनिक भारत में पहला अंतर्जातीय विवाह था। सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका है। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थी। तो रास्ते में लोग उन पर गोबर, कीचड़, गंदगी तक फेका करते थे। जिसके कारण वह एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी। और स्कूल पहुंचकर गंदी हुई साड़ी को बदल लेती थी। महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया।

 

अगले साल 1857 में प्लेग की भयंकर महामारी के कारण प्रतिदिन सैकड़ों लोग मर रहे थे। सावित्रीबाई ने यशवंत को छुट्टी लेकर आने को कहा और यशवंत के लौटने पर उनकी मदद से उन्होंने अपने परिवार के खेतों में एक हॉस्पिटल खुलवाया। बीमार लोगों के पास जाकर और खुद उनको हॉस्पिटल लेकर आती थी। जानते हुए ये एक संक्रामक बीमारी है। फिर भी उन्होंने बीमार लोगों की सेवा और देखभाल करना जारी रखा। जैसे ही उनको पता चला कि मुंडवा गांव के बाहर महारो की बस्ती में पांडुरंग गायकवाड का पुत्र प्लेग से पीड़ित हो गया है। वह वहा गई और बीमार बच्चे को पीठ पर लादकर हॉस्पिटल लेकर आई। इस प्रक्रिया में यह महामारी उनको भी लग गई और 10 मार्च 1897 को रात 9:00 बजे आखिरकार उनकी सांसे हमेशा के लिए थम गई। दीनबंधु ने उनकी मृत्यु की खबर को बड़े ही दुख के साथ प्रकाशित किया।

 

जो लोग पीठ पर बच्चे को लादकर लड़ती हुई लक्ष्मीबाई की बहादुरी का गुणगान करते हैं, उन्होंने इस महिला की बहादुरी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। जिसने अपनी पीठ पर लादकर एक बीमार बच्चे को बचाया। उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता। उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है। जिसमें वह सब को पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाती तोड़ने की बात करती है।

 

जाओ जाकर पढ़ो लिखो बनो आत्मनिर्भर,
बनो मेहनती
काम करो ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है,
ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए खाली ना बैठो,
जाओ जाकर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,
इसलिए सीखो और जाति के बंधन को तोड़ दो !

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अजमेर में संभाग सम्मेलन संपन्न।

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2 replies added

  1. बी पी बौद्ध, राष्ट्रीय महासचिव, मिशन जय भीम January 5, 2023

    सावित्री बाई फुले के बारे में बहुत सारी जानकारी लेख द्वारा मिली। सच्चे मायने में राष्ट्रीय अध्यापिका दिवस सावित्री बाई फुले के जन्म दिवस 3 जनवरी को मनाया जाना चाहिए।
    ऐसी महान विभूति को शत शत नमन।

  2. Aashish Ambedkar January 5, 2023

    कोटि कोटि नमन

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