6 दिसंबर 1956 बाबा साहब का परिनिर्वाण।
6 दिसंबर 1956 बाबा साहब ने आखरी साँस ली थी। उनकी पुण्य तिथि को बाबा साहब के परिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है। बौद्ध धर्म में, ‘परिनिर्वाण’ जिसका अर्थ है निर्वाण-मृत्यु के बाद किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर होता है जिसने अपने जीवनकाल में निर्वाण प्राप्त किया हो। इसका तात्पर्य संसार, कर्म और पुनर्जन्म के साथ-साथ स्कंधों के विघटन से मुक्ति है।
डॉ बीआर अंबेडकर भारत के संविधान के मुख्य शिल्पकार थे। वह एक प्रसिद्ध भारतीय न्यायविद्, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक भी थे जिन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन के साथ-साथ महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों को प्रेरित किया।
6 दिसंबर 1956 को बाबा साहब अम्बेडकर नींद में दिल्ली में अपने घर 26 अलीपुर रोड से हमें छोड़ कर चले गए। वो मधुमेह से ग्रस्त थे। 6 दिसंबर को डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। 7 दिसंबर को दादर चौपाटी समुद्र तट (चैत्य भूमि) पर एक बौद्ध दाह संस्कार का आयोजन किया गया, जिसमें लाखों शोकग्रस्त लोगों ने भाग लिया। बाबा साहब अम्बेडकर के अंतिम संस्कार के बाद इसे चैत्य भूमि के रूप में जाना जाने लगा। चैत्य भूमि विश्व के सभी अम्बेडकरवादियों और बौद्धों के लिए एक पूजनीय तीर्थस्थल है।
इस तरह एक महान न की संविधान के बल्कि भारत के शिल्पकार हमें छोड़ कर चले गए।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्री और कई अन्य राजनेता हर साल 6 दिसंबर को चैत्य भूमि में अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देते हैं। चैत्य भूमि अम्बेडकर के लिए एक स्मारक की मेजबानी करती है और महाराष्ट्र सरकार द्वारा ए श्रेणी के पर्यटन और तीर्थ स्थल को वर्गीकृत किया गया है।
ऐसे महान व्यक्तित्व को कोटि कोटि नमन।